●पिछली गांव के संतोष भक्त समेत 15 कुम्हारों ने भरण-पोषण को लेकर पुस्तैनी धंधा से हुए विमुख, इटली या अन्य कारोबार से जुड़ अपने व अपने परिवार की मिटा रहे हैं भूख
जादूगोड़ा : पोटका में कुम्हारों को चाक के लिए मिट्टी मिलना मुश्किल हो गया है। इसको लेकर प्रखण्ड क्षेत्र के पिछली गांव के संतोष भक्त समेत 15 कुम्हारों ने भरण-पोषण को लेकर अपनी पुस्तैनी धंधा से मुंह मोड़ कर अन्य कारोबार से जुड़ गए है। कई लोग तो घूम-घूम कर इटली बेच जिन्दगी की गाड़ी खींच रहे है। जिससे प्रतिदिन 3से 4 सौ की कमाई कर पाते है। मामला पोटका प्रखण्ड के पिछली गांव का है।।इधर यह तरह तस्वीर सामने आने के बाद जेएलकेएम नेता भागीरथी हांसदा ने झारखंड सरकार से कुम्हारों की समस्याओं का समाधान कर उन्हें वापस उनकी अपनी पुस्तैनी धंधे से जोड़ने हेतु पहल करने की मांग की है ताकि कुम्हारों का जीवन अपनी मिट्टी के कारोबार से फल-फूल सके और वे वापस अपनी पुश्तैनी धंधे में लौट कर स्वाभिमान के साथ जी सकें। ताजा मामला पोटका प्रखण्ड क्षेत्र के माटकू पंचायत के पिछली गांव के 70 वर्षीय संतोष भक्त का है जिन्होंने कुम्हार का पुस्तैनी धंधा छोड़ कर घूम- घूम कर इटली बेच अपना व अपने परिवार का गुजारा करते है। इस बाबत पूछे जाने पर संतोष भक्त कहते है कि पिछली गांव में डेढ़ सौ घर कुम्हारो का है। इसमे 15 परिवार अपनी मिट्टी के पेशे को छोड़ अन्य कार्यों से अपनी जीविका चलाते है। इसकी वजह के बाबत उन्होंने बताया कि भट्टी में हाड़ी को पकाने के लिए लकड़ी नहीं मिलता। गांव में मिट्टी का घोर अभाव है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि उन्हें मिट्टी का बर्तन बनाने समेत, मिट्टी मिलाने वाला मशीन उपलब्ध कराया जाए ताकि कुम्हार अपनी कमाई में बढ़ोतरी कर वापस अपनी धंधे में लौट सके। अपना दर्द बयां करते हुए संतोष भक्त कहते है दिनभर भी मिट्टी का कार्य करने पर 50 रुपया तक की हाजरी तक नहीं मिलता। एक हांडी बनाने में पांच दिन लगता है जिसकी कीमत 60 रुपये मिलता है। लकड़ी की कीमत 300 रुपये है। जिसे भट्ठा में जलाने में खर्च हो जाता है व मेहनत अलग। जरूरत है कुम्हारों लका उत्पाद सरकार सीधे खरीदे तभी जाकर कुम्हार बचेंगे अन्यथा आने वाले दिनों में इतिहास के पन्नों में कुम्हार सिमट कर रह जाएंगे।

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