चक्रधरपुर : सिंहभूम की सांसद जोबा माझी ने सोमवार को अतारांकित प्रश्न के माध्यम से झारखंड में संविदा एवं आउटसोर्स श्रमिकों की छंटनी का मामला संसद में उठाया। सांसद जोबा माझी ने श्रम एवं रोजगार मंत्रालय से जानकारी मांगी कि रोजगार उपलब्ध कराने की सरकार की प्रतिबद्धताओं के बावजूद पिछले दस वर्षों के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों एवं निजी क्षेत्रों में संविदा एवं आउटसोर्स पर कार्यरत कितने श्रमिकों की छंटनी की गई। उन्होंने पूछा कि क्या सरकार ने इस तथ्य पर गौर किया है कि झारखंड में स्थित बोकारो स्टील प्लांट, सेल सीमेंट, कोयला एवं परिवहन कंपनियों में छंटनी के कारण बड़े पैमाने पर बेरोजगारी पैदा हुई है, जो आदिवासी बहुल झारखंड के लिए अच्छा संकेत नहीं है। साथ ही पूछा कि क्या सरकार ऐसी कंपनियों को श्रम कानूनों का सख्ती से पालन करने के लिए उचित कदम उठाने का निर्देश देने का विचार रखती है। सांसद के प्रश्न के उत्तर में श्रम एवं रोजगार राज्य मंत्री सुश्री शोभा करंदलाजे ने कहा है कि औद्योगिक प्रतिष्ठानों में छंटनी से संबंधित मामले औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 (आईडी अधिनियम) के प्रावधानों द्वारा शासित होते हैं। औद्योगिक विवाद अधिनियम के अनुसार, 100 या उससे अधिक व्यक्तियों को रोजगार देने वाले प्रतिष्ठानों को बंद करने, छंटनी या ले-ऑफ करने से पहले उपयुक्त सरकार की पूर्व अनुमति लेनी आवश्यक है। औद्योगिक विवाद अधिनियम में छंटनी और छंटनी किए गए श्रमिकों को मुआवजे के अधिकार का भी प्रावधान है और इसमें छंटनी किए गए श्रमिकों को फिर से रोजगार देने का प्रावधान है। श्रम विषय समवर्ती सूची में आता है। औद्योगिक संबंध अधिनियम में निर्धारित अपने-अपने अधिकार क्षेत्र के आधार पर, केंद्र और राज्य सरकारें श्रमिकों की समस्याओं के समाधान और उनके हितों की रक्षा के लिए कार्रवाई करती हैं। केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आने वाले प्रतिष्ठानों में, केंद्रीय औद्योगिक संबंध तंत्र (सीआईआरएम) को अच्छे औद्योगिक संबंध बनाए रखने और छंटनी और इसकी रोकथाम से संबंधित मामलों सहित श्रमिकों के हितों की रक्षा करने का कार्य सौंपा गया है। स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दस वर्षों के दौरान झारखंड में सीधे तौर पर नियुक्त ठेका मजदूरों और दैनिक वेतनभोगी मजदूरों की छंटनी नहीं की गई है।
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