गम्हरिया : प्रखंड के जगन्नाथपुर बस्ती स्थित मार्ग संख्या 13 में बीते एक सप्ताह से चल रहे श्रीमद भागवत कथा का बुधवार को समापन हुआ। श्रीमद् भागवत कथा के सातवें व अंतिम दिन आचार्य श्री वेदान्द शास्त्री जी ने रुक्मिणी- कृष्ण विवाहोत्सव से कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि रति के करुणापूर्ण निवेदन पर भगवान शंकर ने उनके पति कामदेव की प्रद्युम्न के रूप में कृष्ण-रुक्मिणी के पुत्र होने का आशीर्वाद दिए। स्यमन्तक मणि की व्याख्या के साथ भगवान का जाम्बवान् के साथ मल्लयुद्ध एवं उनकी बेटी जाम्बवती एवं सत्यभामा से मंगल विवाह के बारे में उन्होंने बताया। उसके बाद कृष्ण के संतानों के बारे में बताए। भगवान का वाणासुर, पोण्डक, काशिराज के वध की प्रसंग की भी जानकारी दी जिसमें नारद जी का भगवान के पारिवारिक दिनचर्या को देखने की व्याख्या किया। पाण्डवों द्वारा राजसूय यज्ञ के दरम्यान जरासंध का वध भीम के द्वारा करवाए। शिशुपाल का वध, दन्तवकत्र के वध आदि के बारे में भी उन्होंने बताया। मित्रता के बारे में बताते हुए आचार्य जी ने श्रीकृष्ण- सुदामा की मैत्री को बताया। सुदामा की पत्नी सुशीला की प्रेरणा से सुदामाजी श्री कृष्ण दर्शन के लिए भगवान के दरबार में आए। अपनी विपन्नता में जीतें भी सुदामा जी ने कभी भगवान से सहायता या अर्थ याचना नहीं किए | भगवान ने अपने प्रिय मित्र का आदर भाव में अपनी ठकुराई अर्थात् जगतपिता के अस्तित्व को भूलकर अपने चक्षुजल से उनके चरण धोए और बिना याचना' किए ही सर्व ऐश्वर्य दे दिए। मीरा की दृढ़ प्रेम की व्याख्या करते हुए कहा कि मीरा ने अपने कुटुम्ब, जन, धन, ऐश्वर्व, लोक लाज सभी का त्याग कर दिया। कहा कि भगवान से प्रेम सांसारिक संबंधो एवं सुखों को त्याग से ही संभव है। यही बात गोपियों ने उद्धवजी को बताया था कि एक ही मन था वो तो कृष्ण में लग गया, अब दुसरा मन कहाँ से लाऊँ जिसे अपनी गृहचर्या में लगाऊँ । पुनः आचार्य जी ने श्रीभागवत को पुनरीक्षित करते हुए श्री कृष्ण के अन्य लीलाओं का वर्णन करते हुए कथा को विश्राम दिय। उन्होंने कहा कि प्रत्येक जीव के माथे पर तीन ताप यथा- दैहिक, दैविक और भौतिक, तीन प्रकार के ग्राह्य बातें- भक्ति, ज्ञान और वैराग्य होता है। वैराग्य गृह त्याग से नहीं सभी वासनाओं का त्याग और अपना सभी कर्म प्रभु को निवेदित होना चाहिए। अतः प्रभु के लिलामयी गुणगान का चिंतन, मनन और ग्रहण करते रहना चाहिए।
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