पुरानी संस्कृति और परंपरा को छोड़ना और भूलना नहीं चाहिए- सुनील कुमार दे
जादूगोड़ा : पोटका के नुआ ग्राम में आज भी वर्षों पुरानी परंपरा जिंदा हैं। मकर संक्रांति के मौके पर मकर कीर्तन करने की परंपरा है। ऐसी पारंपरिक मान्यता है कि पौष संक्रांति के दिन भगीरथ माँ गंगा को मृत्युलोक में तपस्या करके लाए थे।उनके अभिशप्त सागर वंश को मुक्ति दिलाने के लिए गंगा सागर के कपिल मुनि के आश्रम में माँ गंगा का स्पर्श पाकर सागर वंश का उद्धार हुआ था। जिसकी वजह से पौष संक्रांति में गंगा स्नान करने समेत मकर कीर्तन का विशेष महत्व हुआ। सभी लोग गंगा स्नान करने नहीं जा पाते हैं इसलिए गाँव के लोग कोई नदी अथवा तालाब में जाकर नहाते है और नए वस्त्र पहनते हैं। उसके बाद मकर कीर्तन करते हुए घर आते हैं। यह धार्मिक परंपरा आज भी पोटका के नुआग्राम में जीवित हैं। इस अवसर पर प्रातः 11 बजे गांव के कीर्तन मंडली सुनील कुमार दे के नेतृत्व में गांव के तालाब से मकर कीर्तन करते हुए आए।साहित्यकार सुनील कुमार दे ने मकर कीर्तन पर कहा कि पौष संक्रांति दिन में चैतन्य महाप्रभु अपने भक्तजनों के साथ गंगा स्नान हेतु हरिनाम करते हुए माँ गंगा के पास पहूंचे। मकर कीर्तन करने के पीछे यही मान्यता है।नुआग्राम के कीर्तन मंडली द्वारा मकर कीर्तन करते हुए पूरे गांव की परिक्रमा किया गया। अंत मे लक्ष्मी मंदिर में कीर्तन का समापन हुआ।कीर्तन के पश्चात मकर चावल और तिल लड्ड़ू प्रसाद के रूप में वितरण किया गया। उंक्त कीर्तन मंडली में सुनील कुमार दे के अलावा शंकर चंद्र गोप, भास्कर चंद्र दे, स्वपन दे, तरुण दे, तपन दे, महादेव दे, प्रशांत दे, शैलेन्द्र प्रमाणिक, प्रदीप दे, अरुण पाल, शिशिर कर्जी आदि शामिल थे। इस मौके पर सुनील कुमार दे ने कहा कि इस प्रकार की परंपरा झारखंड के कई गांवों में आज भी जीवित है और रखना भी चाहिए क्योंकि किसी भी जाति की पहचान अपनी भाषा, संस्कृति और परंपरा से होती है।इसलिए आधुनिक जीवन के नाम पर यह पुरानी संस्कृति और परंपरा को छोड़ना अथवा भूलना नहीं चाहिए।
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