★15 दिनों के भीतर मांगें पूरी करें, अन्यथा परिणाम भुगतने के लिए रहें तैयार
गम्हरिया : टाटा स्टील की वादाखिलाफी से आक्रोशित विस्थापित-प्रभावित एवं आदिवासी-मूलवासियों ने कंपनी को मांगों से संबंधित 15 दिनों का अंतिम अल्टीमेटम देकर पूरा करने अन्यथा निर्धारित अवधि के बाद परिणाम भुगतने को तैयार रहने की चेतावनी दी है। टीजीएस गेट से सटे सरना उमूल परिसर में विस्थापित-प्रभावित संघर्ष मोर्चा के नेतृत्व में रविवार को आयोजित पत्रकार वार्ता में मुखिया मोहन बास्के ने यह जानकारी दी। बास्के ने स्थानीय विस्थापितों के साथ घोर अन्याय करने का आरोप लगाते हुए कहा कि मांगों को लेकर टाटा स्टील प्रबंधन को पिछले तीन महीने में कई बार मांग एवं स्मार पत्र सौंपा गया, किंतु हर बार उनकी ओर से एक भी ठोस जवाब नहीं दिया गया। इससे यह जाहिर हो रहा है कि विस्थापित प्रभावितों की मांगों को टाटा स्टील नजर अंदाज कर रही है। उन्होंने कहा कि मांगों को लेकर कल सोमवार को अंतिम स्मार पत्र टाटा स्टील प्रबंधन को सौंपकर 15 दिनों का समय दिया जायेगा। उन्होंने कहा कि टाटा स्टील की ओर से 3 जनवरी को मोर्चा को दिए गए मांग पत्र का जवाब औचित्यहीन है। इसमें हमारी मांगों से संबंधित बातों का गोल मटोल जवाब देकर गुमराह किया गया है।
टाटा स्टील को बार बार दिया मौका
मोर्चा के संयोजक छाया कांत गोराई ने बताया कि टाटा स्टील प्रबंधन को मांगों को लेकर कई बार स्मार पत्र देकर मौका दिया गया। बताया कि पिछले 18 मार्च को पहला लेटर टीएसएलपीएल के निदेशक आशीष अनुपम को दिया गया था। इस पत्र में क्षेत्र में भीषण प्रदूषण से लेकर अन्य मांगों को दर्शाया गया था। इसके बाद 18 मई और 27 नवंबर को भी एमडी को पत्र देकर समस्याओं से अवगत कराया गया था। उन्होंने बताया कि टाटा स्टील की ओर से आश्वासन के सिवा आज तक कुछ हासिल नहीं हुआ। अब सब्र का बांध टूट गया है। टाटा स्टील के साथ विस्थापित-प्रभावित सौ साल का हिसाब मांगते हुए आर पार की लड़ाई के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि सामने मकर, टुसू, सोहराय आदि पर्व को लेकर 5 जनवरी के आंदोलन को स्थगित करते हुए आगे बढ़ा दिया गया है।
नियोजन एवं अप्रेंटिस में प्राथमिकता नहीं
गोराई ने कहा कि टाटा स्टील ने क्षेत्र में कोई ठोस कार्य नही किया है। पेयजल, स्वास्थ्य, शिक्षा, नियोजन समेत बुनियादी सुविधाओं पर ध्यान नहीं दी है। अप्रेंटिस में कर्मचारी पुत्रों, आश्रितों एवं डिप्लोमा होल्डर की बहाली में स्थानीय विस्थापित प्रभावितों का कोई जिक्र नहीं करता हैं, और अगर कभी करता भी है तो इसमें यह स्पष्ट नहीं है कि कितने लोगों को इसमें मौका दिया जा रहा है। कहा कि राज्य सरकार ने निजी कंपनी में स्थानीय लोगों का 75 प्रतिशत नियोजन अनिवार्य करते हुए कानून बना दिया है, किंतु टाटा स्टील प्रबंधन के लिए यह कानून कोई मायने नहीं रखता है। उन्होंने कहा कि सम्पूर्ण क्षेत्र प्रदूषण की गंभीर चपेट में है। नदी, तालाब एवं कुआं में प्रदूषण की काली परत जम गई है। खेतिहर जमीन की स्थिति बंजर हो गई है। क्षेत्र के छोटा गम्हरिया, बड़ा गम्हरिया, कालिकापुर, बाड़ूबाद, सिदादीह, दुग्धा, सालडीह, उपरबेड़ा, झुरकुली समेत आसपास के दर्जनों गांवों का अस्तित्व मिटने के कगार पर है। जबकि यहां की खेतिहर जमीन बंजर होती जा रही है। सीतारामपुर डैम में प्रदूषण से पेयजल पर संकट उपस्थित हो गया है। यहां के ग्रामीणों में सांस, चर्म समेत विभिन्न रोग फैलने से पलायन पर विवश हैं। टाटा स्टील सीएसआर के तहत आसपास के गांवों में कोई कार्यक्रम नहीं करती है। वल्लभ स्टील के कामगारों की सूची भी प्रबंधन को सौंपी गई, किंतु इस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया। 193 बैठाए कामगारों को अभी तक नियोजन नहीं मिला। कहा कि गम्हरिया- झुरकूली मार्ग पर जहां कामगारों के वाहनों को खड़ा कर सड़क अतिक्रमण कर लिया है, वहीं टीजीएस के सामने पीडब्लूडी की जमीन का अतिक्रमण कर पार्किंग बना दिया है। इससे लोगों को काफी परेशानी होती है।
ये थे उपस्थित
इस अवसर पर मुखिया मोहन बास्के, बीटी दास, दीपक नायक, दुर्योधन प्रधान समेत काफी संख्या में मोर्चा के सदस्य उपस्थित थे।
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